मुखपृष्ठ » अध्याय 1 पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन – प्रश्न उत्तर

अध्याय 1 पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन – प्रश्न उत्तर

by डीपी न्यूज़ टीम
पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन

पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन एक रोमांचक और महत्वपूर्ण विषय है जो वनस्पतियों के जीवन की प्रमुख प्रक्रियाओं में से एक है। यह प्रक्रिया पुष्पों के उत्पत्ति से लेकर बीजों के उत्पादन तक कई महत्वपूर्ण चरणों में होती है। पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन की यह प्रक्रिया उनके विकास और प्रजनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो उनकी संजीवनी शक्ति को सुनिश्चित करती है और उनकी प्रजनन संभावनाओं को बढ़ाती है। इस प्रेरणादायक विषय पर चर्चा करते समय, हमें पुष्पी पादपों के लैंगिक प्रजनन की प्रक्रिया के विविध और रोमांचक पहलुओं को समझने का अवसर मिलता है।

Table of Contents

1. एक आवृतबीजी पुष्प वेफ उन अंगों वेफ नाम बताएँऋ जहांँ नर एवं मादा युग्मकोद्भिद का विकास होता है?

उत्तर – आवृतबीजी पुष्पों में, फूल के अंगों का महत्वपूर्ण अंग ‘स्टामेन्स’ होता है। स्टामेन्स फूल के अंडवृत्त (गर्भाशय) के भीतर स्थित होते हैं और पुरुष जीवाणुओं (नर) के स्थायी विकास का निर्माण करते हैं। इनका मुख्य कार्य अनुवांशिक उत्पादन की प्रक्रिया में सहायकता करना होता है।

स्टामेन्स ध्वनिक (ध्वनित) जलनिकास के रूप में स्वच्छंद में विकसित होते हैं। ये एक लंबी पतली धारा की आकृति में होते हैं, जो एक केंद्रीय अक्ष के चारों ओर से विकसित होती है। स्टामेन्स में छोटी छोटी बूंदें होती हैं जिन्हें ‘धानिका’ कहा जाता है, जो पुरुष जीवाणुओं के स्थायी विकास के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। ये धानिकाएँ अंडवृत्त की गणना करने के लिए विकसित होती हैं और उन्हें प्रोटीन संश्लेषण के लिए अनुपातित करती हैं। धानिकाओं के विकास के बाद, ये अंडवृत्त में बीज का निर्माण करते हैं जिससे अंडवृत्त बनता है और फलने की प्रक्रिया शुरू होती है।

इस प्रक्रिया में, नारी और पुरुष जीवाणुओं का संयोजन होता है, जो फूल के अंडवृत्त में बीज के रूप में समाहित होता है। यह बीज बाद में नए पौधों का उत्पादन करता है, जो पूरे पौधे के विकास की शुरुआत होती है।

संक्षेप में, स्टामेन्स फूलों में बीज के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो फलने की प्रक्रिया की शुरुआत करते हैं और नए पौधों का उत्पादन करते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से फूल अपनी प्रजननी शक्ति को संतुलित रखते हैं और नए जीवों का उत्पादन करते हैं।

2. लघुबीजाणुधनी तथा गुरूबीजाणुधनी वेफ बीच अंतर स्पष्ट करें? इन घटनाओं वेफ दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन संपन्न होता है? इन दोनों घटनाओं वेफ अंत में बनने वाली संरचनाओं वेफ नाम बताएँ?

उत्तर – लघुबीजाणुधनी और गुरूबीजाणुधनी वेफ दो प्रमुख घटनाएं हैं जो जीवाणुओं के जीवन चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें अंतर और वेफ दौरान का कोशिका विभाजन का तरीका निम्नलिखित है:

  1. लघुबीजाणुधनी:
    • यह वेफ का पहला चरण होता है।
    • यह गति से और उत्तेजना से होता है।
    • कोशिकाओं का विभाजन सिरमेटोसिस नामक प्रक्रिया द्वारा होता है।
    • इसमें निर्मित होने वाली अंतिम संरचना को लघुबीज कहा जाता है।
  2. गुरूबीजाणुधनी:
    • यह वेफ का दूसरा चरण होता है, जो लघुबीजाणुधनी के बाद होता है।
    • यह धीमी गति और नियंत्रित अवस्था में होता है।
    • कोशिकाओं का विभाजन मितोसिस नामक प्रक्रिया द्वारा होता है।
    • इसमें निर्मित होने वाली अंतिम संरचना को गुरूबीज कहा जाता है।

इस रूप में, लघुबीजाणुधनी और गुरूबीजाणुधनी वेफ के बीच यह मुख्य अंतर है कि वे जीवाणु के जीवन चक्र के विभिन्न चरणों में आवरण करते हैं और वेफ के अंत में बनने वाली संरचनाओं का निर्माण करते हैं। यह संरचनाएँ उनके प्रारंभिक चरणों में केरेटोग्लोबुलिन और रिबोसोम जैसे तत्वों के साथ जुड़ती हैं जो कि उनके जीवन के आगे के चरणों के लिए आवश्यक होते हैं।

3. निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें – परागकण, बीजाणुजन ऊतक, लघुबीजाणुचतुष्क, परागमातृ कोशिका, नर युग्मक

उत्तर – सही विकासीय क्रम में शब्दावलियाँ हैं:

  1. परागमातृ कोशिका: यह प्रारंभिक विकास का पहला चरण है, जहाँ अंडाणु के बाद अंडवृत्त के रूप में आवरित होती है।
  2. लघुबीजाणुचतुष्क: यह अंडवृत्त के अंदर निर्मित होता है और इसमें चार प्रारंभिक संरचनाएं होती हैं, जिसमें बीजाणुजन ऊतक भी शामिल हैं।
  3. बीजाणुजन ऊतक: यह ऊतक बीजाणु के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है, और यह बीजाणु की उत्पत्ति में सहायक होता है।
  4. नर युग्मक: यह यौन जनन प्रक्रिया का महत्वपूर्ण चरण है, जहाँ नर (पुरुष) और मादा (स्त्री) युग्मक एक साथ मिलकर नये जीवाणु का निर्माण करते हैं।
  5. परागकण: यह अंतिम चरण है, जहाँ नया जीवाणु उत्पन्न होता है और बाहर आता है। इस प्रक्रिया के बाद, जीवाणु पूर्ण विकसित होकर अपने पर्यावरण में जीने के लिए तैयार हो जाता है।

4. एक प्ररूपी आवृतबीजी बीजांड वेफ भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं सापफ सुथरा नामांकित चित्रा बनाएँ।

आवृतबीजी बीजाण्ड

5. आप मादा युग्मकोद्भिद् वेफ एकबीजाणुज विकास से क्या समझते हैं?

ऊ० १ – मादा युग्मकोद्भिद् वेफ एकबीजाणुज विकास से आमतौर पर जानवरों और मानवों में गर्भाशय में गर्भाशय के बाहर की दिशा में स्थित होता है। यह विकासीय चरण नार (मादा) युग्मकोद्भिद् (embryo) का उत्पन्न होने का चरण है। इस चरण में, पुरुष युग्मकोद्भिद् (sperm) और मादा युग्मकोद्भिद् (egg) का आधुनिक संस्करण उत्पन्न होता है, जिसे गार्डिना नामक एक नई संरचना या बीजाणुज कहा जाता है। यह बीजाणुज अंत में गर्भाशय के बाहर निकलता है और वहाँ स्थित मां के शरीर में स्थायी अवस्था में विकसित होता है। इस प्रक्रिया के बाद, गर्भावस्था शुरू होती है और नवजात शिशु का विकास आरंभ होता है।

ऊ० २  – मादा युग्मकोद्भिद् वेफ एकबीजाणुज विकास के संदर्भ में वनस्पतियों में सीधे उल्लेख संभव नहीं हैं, क्योंकि वनस्पतियों में यौन प्रजनन का प्रकार वास्तविकता में विभिन्न होता है। वनस्पतियों में, गर्भाशय की स्थिति नहीं होती है जैसा कि जानवरों में होता है।

हालांकि, वनस्पतियों में, यौन प्रजनन वास्तविकता में या तो स्थायी संबंधित संरचना में होता है जैसे कि एकांगी पौधों में, जो की अपने आप में पूरे यौन प्रणाली को संभालते हैं, या फिर अन्य प्रकार के प्रजनन विधियों के माध्यम से होता है, जैसे कि लघुबीज और बड़े बीजाणु के बीच गर्भण (fertilization)।

इस प्रकार के प्रजनन प्रक्रिया के दौरान, बीजाणुज के एक संस्करण बनाया जाता है, जो नवीन वनस्पति के विकास के लिए आवश्यक होता है। इसके बाद, बीजाणुज के संगठन के साथ एक वनस्पति का विकास शुरू होता है, जो कि नवजात पौधे के रूप में प्रकट होता है।

6. एक स्पष्ट एवं साफ सुथरे चित्र वेफ द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद वेफ 7-कोशीय, 8-न्युकिलयेट ;वेंफद्रकद्ध प्रकृति की व्याख्या करें।

एक स्पष्ट एवं साफ सुथरे चित्र वेफ द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद वेफ 7-कोशीय, 8-न्युकिलयेट ;वेंफद्रकद्ध प्रकृति की व्याख्या करें।उत्तर – परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद वेफ, जिसे अंग्रेजी में “Mature Female Gametophyte” कहा जाता है, पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन की महत्वपूर्ण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण चरण होता है। यह वेफ प्राथमिक रूप से संयोजन के लिए जिम्मेदार होता है और उपजाऊ बीज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार के वेफ की संरचना 7-कोशिय, 8-न्युक्लियट होती है, जिसका अर्थ है कि यह 7 कोशियों (सेलों) का समूह होता है, जिनमें 8 न्यूक्लियस (नाभिका) होते हैं। इसका मतलब है कि वेफ के प्रत्येक सेल में 8 न्यूक्लियस होते हैं, जो कि परिपक्व और जीवात्मक उत्सर्जन के लिए महत्वपूर्ण हैं। परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद वेफद्रकद्ध प्रकृति वास्तव में उसकी उपजाऊ या विकासशीलता को दर्शाता है। इसके सेलों की संरचना एक विकसित और परिपक्व युग्मकोद्भिद को सूचित करती है जो संयोजन और बीज के विकास के लिए पूरी तरह से तैयार है। इस प्रकार की वेफ प्रजनन के लिए पूरी तरह से उपयुक्त होती है और नए पौधों के उत्पन्न होने में अहम भूमिका निभाती है।

7. उन्मील परागणी पुष्पों से क्या तात्पर्य है? क्या अनुन्मीलिय पुष्पों में परपरागण संपन्न होता है? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें?

उत्तर – “उन्मील परागणी पुष्प” एक वनस्पतिकी शब्दावली है जो पौधे के फूल के संरचना को व्यक्त करता है। “उन्मील” शब्द का अर्थ होता है कि फूल के अंग एक साथ बंधे होते हैं, जिससे फूल का परिचय अधिक स्पष्ट होता है। इसका मतलब है कि पुष्प के पार्श्वीय अंग, जैसे कि पेटल्स (पंक्तियाँ) या अंगपाल (सेपल्स), एक समृद्धिशील या अंतः आपस में जुड़े होते हैं। यह फूल के परिचय को अधिक स्पष्ट बनाता है और उसकी सुंदरता को बढ़ाता है।

जब हम “अनुन्मीलिय पुष्पों” की बात करते हैं, तो विचार किया जाता है कि उनमें परागण नहीं होता है। यह अर्थ है कि उनके पार्श्वीय अंग अलग-अलग होते हैं, जो कि फूल को अधिक खुला और अलग-अलग दिखाता है।

सतर्क व्याख्या करते हुए, उन्मील परागणी पुष्पों के उदाहरण शामिल होते हैं जैसे कि सुनफ्लावर (सूरजमुखी) और रोज़ (गुलाब)। इनमें पेटल्स एक साथ बंधे होते हैं और फूल को एकत्रित और समृद्धिशील रूप में प्रदर्शित करते हैं। विरोध में, अनुन्मीलिय पुष्पों के उदाहरण शामिल होते हैं जैसे कि डेजी (गुलदाउद) और लिली (कुंवर कुमुद) जहाँ पेटल्स अलग-अलग और स्पष्ट रूप से विभाजित होते हैं।

इस तरह, परागणी और अनुन्मीलिय पुष्पों में फूल की संरचना में अंतर होता है जो कि उसकी खासियतों और उपयोगिता को बताता है।

8. पुष्पों द्वारा स्व-परागण रोकने वेफ लिए विकसित की गई दो कार्यनीति का विवरण दें।

उत्तर – पुष्पों द्वारा स्व-परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्यनीतियों का विवरण निम्नलिखित है:

स्व-अस्वीकृति (Self-Incompatibility): इस कार्यनीति के अनुसार, पुष्प अपने आप को अपनी गर्भाशय में परागण के लिए अस्वीकार करते हैं। इस प्रक्रिया में, पुष्पों में स्व-परागण के लिए विकसित होने वाले आणविक संरचनाओं को प्रतिभिज्ञ किया जाता है ताकि वे अपने आप को पुष्प के अंदर निषेधित कर सकें। इस प्रकार, वृक्ष या पौधे अपने आप को अनुवांशिक उत्पादन के लिए अस्वीकार करते हैं जो स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया को रोक देता है।

फिजिओलॉजिकल नकारात्मकता (Physiological Autonegativity): इस कार्यनीति में, पुष्प अपनी जीवंतता की रक्षा के लिए स्व-परागण को रोकने के लिए विभिन्न फिजिओलॉजिकल प्रक्रियाओं को उत्पन्न करते हैं। इसमें, उन्हें विभिन्न रसायनों या हार्मोनों का उत्सर्जन करने के लिए प्रेरित किया जाता है जो पुष्प के गर्भाशय में परागण के विकास को रोकते हैं। इस प्रकार, पुष्प स्व-परागण की संभावना को कम करने के लिए अपनी संरचनाओं को नियंत्रित करते हैं।

इन कार्यनीतियों के माध्यम से, पुष्प अपनी जीवंतता और विकास की सुरक्षा के लिए स्व-परागण को रोकते हैं जिससे उनके अनुवांशिक विकास में विघ्न आता है।

9. स्व अयोग्यता क्या है? स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुँच पाती है?

उत्तर – “स्व अयोग्यता” एक जीनेटिक प्रक्रिया है जो एक पौधे या एक प्रजाति में यौन प्रजनन को निषेधित करती है। यह एक स्वाभाविक संरचना है जो विभिन्न प्रजातियों में पाई जाती है।

स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में, यौन प्रजनन प्रक्रिया बीज की रचना तक पहुँच नहीं पाती है क्योंकि वे स्व-परागण को निषेधित करती हैं। इस प्रकार की स्व-अयोग्यता कार्यनीतियाँ एक प्रजाति के विकास में भूमिका निभाती हैं और विभिन्न प्रजनन मेकेनिज़म्स के उत्पन्न होने से रोकती हैं, जिससे बीजों का उत्पादन नहीं होता है।

इसके कुछ मुख्य कारण हो सकते हैं:

स्व-अस्वीकृति (Self-Incompatibility): कुछ प्रजातियों में, एक व्यक्ति के विकास के दौरान उसके अंतर्जातीय रोमांचकों को अपने अपेक्षित अंतर्निहित रोमांचों के साथ संग्रहीत किया जाता है और इस प्रकार, उसे उसके प्रतिकूल प्रतिकूल कार्यों से बचाया जाता है।

अलर्जिक अवरोध (Allergic Inhibition): कुछ प्रजातियों में, वनस्पतियों के अणु एक-दूसरे के विकास को रोकने वाले अलर्जिक प्रदर्शनों को उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे वे स्व-परागण को रोकते हैं।

स्व-अयोग्यता की विभिन्न प्रकारों के द्वारा, प्रजातियों में संयोजन की तरह रोकावट लगाकर, वनस्पतियों के विकास में अंतर्निहित प्रक्रियाओं को संज्ञान में लाते हैं और उनके लिए विकास की गति को नियंत्रित करते हैं।

10. बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी हैं?

उत्तर – “बैगिंग (बोरावस्त्रावरण)” या “थैली लगाना” एक तकनीक है जिसमें पौधे के विकास के दौरान एक पारदर्शी प्लास्टिक थैली या पर्दा पाधप की जड़ों के चारों ओर लगा दिया जाता है। इस प्रक्रिया में, प्लास्टिक थैली की मदद से वातावरण में एक मिनी-वायुगुहा बनती है जो पौधे को अधिक सतहित भागों में स्थित करती है, जिससे प्रारंभिक विकास में स्थिरता प्राप्त होती है।

पादप जनन कार्यक्रम में, बैगिंग या थैली लगाना कई तरह की उपयोगिता प्रदान कर सकता है:

  1. जलवायु नियंत्रण: बैगिंग वायुमंडलीय तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। इसके द्वारा, पौधे के जड़ें समृद्ध और सुरक्षित रहती हैं, जो उन्हें उचित तापमान और आर्द्रता प्रदान करता है और विकास की गति को बढ़ावा देता है।
  2. रोग नियंत्रण: बैगिंग पाधप को विषाणुओं, फंगस और अन्य रोगकारकों से बचाने में मदद कर सकता है। यह प्लास्टिक प्रारंभिक रोग आक्रमण से जड़ों की सुरक्षा प्रदान करने में मदद करता है और फसल की संभावित उत्पादन को बढ़ावा देता है।
  3. उत्पादन की वृद्धि: बैगिंग प्लास्टिक थैली या पर्दे की मदद से पौधों की जड़ें सुरक्षित और सुचरित रहती हैं, जिससे पौधों की वृद्धि में सुधार होता है और उत्पादन का स्तर बढ़ जाता है।

इस प्रकार, बैगिंग या थैली लगाना पादप जनन कार्यक्रम में विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्रदान करता है और फसल के उत्पादन में सुधार कर सकता है।

11. त्रि-संलयन क्या है? यह कहाँ और वैफसे संपन्न होता है? त्रि-संलयन में सम्मिलित न्युक्लीआई का नाम बताएँ।

उत्तर – त्रि-संलयन (Trituration) एक रसायनिक प्रक्रिया है जिसमें तीन अलग-अलग पदार्थों को मिलाकर एक होमोजनस मिश्रण बनाया जाता है। यह प्रक्रिया विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है, जैसे कि औषधि निर्माण, खनिज के प्रशोधन, और केमिकल प्रयोगशालाओं में।

त्रि-संलयन कार्यक्रम विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं और उद्योगों में संपन्न हो सकता है। इस प्रक्रिया को अलग-अलग उद्योगों और वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में उत्पादन के अनुसार विभिन्न तरीकों से व्यावहारिक किया जाता है।

त्रि-संलयन में सम्मिलित न्युक्लीआई का नाम “डेउटेरियम” होता है। डेउटेरियम एक प्रकार का हाइड्रोजन का आइसोटोप है जिसमें प्रोटॉन के साथ न्यूट्रॉन की भी एक अतिरिक्त संख्या होती है। इसलिए, इसका एटम नामकारण में “D” से निर्दिष्ट किया जाता है।

12. एक निषेचित बीजांड में; युग्मनज प्रसुप्ति वेफ बारे में आप क्या सोचते हैं?

उत्तर – युग्मनज प्रसुप्ति वेफ, जिसे अंग्रेजी में “zygote dormancy veil” कहा जाता है, निषेचित बीजांड में एक महत्वपूर्ण प्रकार का वेफ होता है। यह वेफ नए युग्मनज (zygote) को संरक्षित और सुरक्षित रखने में मदद करता है। युग्मनज एक गतिशील एकल कोशिका होती है जो दो प्रारंभिक लघु कोशिकाओं के आत्मसंयोजन के बाद बनती है। यह वेफ युग्मनज को विभिन्न वातावरणीय अवस्थाओं से संरक्षित रखता है, जैसे कि पानी, वायु और तापमान की परिवर्तनता। यह वेफ युग्मनज को आवश्यक आत्मसंजीवनी और उत्सर्जन की वातावरणीय स्थितियों के साथ संरक्षित रखता है, ताकि वह सही समय पर उत्पन्न हो सके और नए पौधों के विकास में सहायक हो सके। इस प्रकार, युग्मनज प्रसुप्ति वेफ बीज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

13. इनमें विभेद करें-

(क) बीजपत्राधर और बीजपत्रोपरिक
(ख) प्राँवुफर चोल तथा मूलाँवुफर चोल
(ग) अध्यावरण तथा बीजचोल
(घ) परिभ्रूण पोष एवं पफल भित्ति

उत्तर – विभेद:

(क) बीजपत्राधर और बीजपत्रोपरिक:

  • बीजपत्राधर (इनडोस्पर्म): यह वनस्पतियों की एक प्रकार की पोषक विभाजन की पद्धति है जिसमें बीज के विकास के लिए प्रारंभिक आहार उत्पन्न किया जाता है जो कि सीतल और स्थिर अवस्था में रहता है।
  • बीजपत्रोपरिक (इक्सीस्टोस्पर्म): इसमें बीज का विकास पूर्ण होने के बाद ही आहार उत्पन्न होता है और यह गर्म और अस्थिर अवस्था में पाया जाता है।

(ख) प्राँवुफर चोल तथा मूलाँवुफर चोल:

  • प्राँवुफर चोल: यह वनस्पतियों की विकास की प्रक्रिया है जिसमें पौधे के मौलिक अंगों में विकास होता है, जैसे कि बीजाणु और नवजात पौधे।
  • मूलाँवुफर चोल: यह वनस्पतियों की विकास की प्रक्रिया है जिसमें नये उत्पन्न होने वाले पौधों के मूलों की विकास की जाती है।

(ग) अध्यावरण तथा बीजचोल:

  • अध्यावरण: यह वनस्पतियों के गर्भाशय का भाग होता है जो उत्पन्न होने वाले बीज को संरक्षित रखता है और उसे उपचयन करता है।
  • बीजचोल: यह वनस्पतियों के बीज की अवधारण करता है और उसे उत्पन्न करता है।

(घ) परिभ्रूण पोष एवं पफल भित्ति:

  • परिभ्रूण पोष: यह वनस्पतियों के बीज के विकास की प्रक्रिया है जिसमें बीज को पौधे के विकास के लिए आवश्यक आहार उपलब्ध कराया जाता है।
  • पफल भित्ति: यह वनस्पतियों के बीज के विकास की प्रक्रिया है जिसमें बीज के विकास के बाद उसे उचित आवश्यकतानुसार भूमि में स्थापित किया जाता है ताकि उसके नए पौधे उत्पन्न हो सकें।

14. एक सेव को आभासी पफल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन सा भाग पफल की रचना करता है।

उत्तर – आभासी पफल के नाम से आशय है कि यह प्रतीत होता है कि एक फूल के अंतर्गत एक प्रवृत्ति हो रही है जिसके बाद फल विकसित होगा, लेकिन वास्तव में उसके प्रारंभिक रूप को दिखाता है। इसलिए इसे “आभासी” या “प्रतीत” पफल कहा जाता है। यह पुष्प के गर्भाशय के रूप में होता है जिसमें बीज के विकास की प्रक्रिया शुरू होती है।

पुष्प का अंडकोष या गर्भाशय (Ovary) पफल की रचना करता है। जब पुष्प के अंडकोष में गर्भाशय विकसित होता है, तो वह फल के रूप में परिणत होता है। इसमें बीज और उसके चारों ओर की जीवंत संरचनाएं संग्रहित होती हैं जो बाद में विकसित होती हैं। इस प्रक्रिया को फलीकरण कहा जाता है।

15. विपुंसन से क्या तात्पर्य है? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है?

उत्तर – “विपुंसन” एक विशेष प्रकार का वनस्पतिक जनन प्रक्रिया है जिसमें प्राणियों के जनन की तरह, पादप भी विपुंसन द्वारा अपने बीज को उत्पन्न कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में, एक निर्दिष्ट वनस्पति के पुराने अंग को नष्ट कर दिया जाता है और उसके स्थान पर नए अंगों का विकास होता है, जिनमें से एक या एक से अधिक बीज पैदा होते हैं।

पादप प्रजनक विपुंसन तकनीक को इस्तेमाल करते हैं जब वे नए पौधों को उत्पन्न करना चाहते हैं लेकिन प्राकृतिक प्रक्रिया नियंत्रित नहीं होती है, जैसे कि नियंत्रित निर्धारित परिस्थितियों में और विशेष किस्म के पौधों के लिए। यह तकनीक उन्हें निश्चित विशिष्ट वनस्पतिक गुणवत्ता या लक्षणों की विकसित विशिष्ट प्रजातियों को प्रदान करने में मदद कर सकती है। इसके अलावा, यह तकनीक वनस्पतियों की विशिष्टता को संरक्षित करने में मदद कर सकती है जिससे उनका उत्पादन और प्रसार बढ़ा सकता है।

16. यदि कोई व्यक्ति वृ(िकारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकजनन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेक जनन वेफ लिए कौन सा पफल चुनते और क्यों?

उत्तर – अनिषेक जनन वेफ को प्रेरित करने के लिए, एक व्यक्ति विभिन्न प्रयोगों और अनुसंधानों में विभिन्न प्रकार के पफल का चयन कर सकता है, जो उनके उद्देश्य और अध्ययन के प्रकार पर निर्भर करता है। यहां कुछ प्रमुख प्रेरित अनिषेक जनन वेफ दिए जा रहे हैं:

  1. सिंगल यूज वेफ (Single Use Vial): यह प्रेरित अनिषेक जनन वेफ एक बार के उपयोग के लिए होता है और उसे उत्पादन की प्रक्रिया के अंत में उपयोग किया जाता है। इसे अधिकांश शोध कार्यों और क्लिनिकल अध्ययनों में उपयोग किया जाता है जहां छोटी मात्रा में उत्पादन की आवश्यकता होती है।
  2. बल्क यूज वेफ (Bulk Use Vial): यह प्रेरित अनिषेक जनन वेफ बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए होता है और अनेक बार उपयोग के लिए डिज़ाइन किया गया होता है। इसे बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है, जैसे कि बड़े क्लिनिकल अध्ययन और उत्पादन की प्रक्रिया में।
  3. स्पेशलाइज्ड यूज वेफ (Specialized Use Vial): यह वेफ विशिष्ट उपयोग के लिए तैयार किया जाता है, जैसे कि विशेष प्रयोगशालाओं या विशेष रोगों के लिए। इसमें निर्दिष्ट उपयोग के लिए अधिक उचित मात्रा और गुणवत्ता होती है।

प्रेरित अनिषेक जनन वेफ का चयन करते समय, उपयोगकर्ता को उनके उद्देश्य, आवश्यकताओं, और अध्ययन के प्रकार को ध्यान में रखना चाहिए।

17. परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या करें।

उत्तर – परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। टेपीटम एक प्रकार का पृथ्वीकोषीय जलमय वस्त्र होता है जो कि परागकण भित्ति के अंतर्गत बीज और अन्य अंगों को सुरक्षित रखता है। यह वस्त्र विभिन्न प्रकार की उपयोगिता प्रदान करता है:

  1. संरक्षण: टेपीटम बीज और अन्य पारगमन अंगों को अलगदो अवस्था से संरक्षित रखता है। यह अवशोषित पानी को बचाकर और अवशोषण को रोककर विकसित होता है।
  2. अभिकल्पन: टेपीटम बीज को बाहरी आक्रिय परिस्थितियों से बचाने में मदद करता है, जैसे कि पानी की उपलब्धता, गर्मी, और संक्रमण।
  3. सम्पीड़न: टेपीटम अंगों को एक स्थिर और समृद्ध माहौल में बनाए रखता है, जिससे बीज और अन्य अंग सही रूप से विकसित हो सकें।
  4. गुणवत्ता: टेपीटम अंगों के विकास में मदद करता है और उन्हें गुणवत्ता और स्थिरता प्रदान करता है।

इस प्रकार, टेपीटम परागकण भित्ति में बीज की रचना को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और बीजों के सही विकास को सुनिश्चित करने में मदद करता है।

18. असंगजनन क्या है और इसका क्या महत्त्व है?

उत्तर – असंगजनन एक प्रकार की वनस्पतिक जनन प्रक्रिया है जिसमें नए पौधे बिना बीजों के उत्पन्न होते हैं। इस प्रक्रिया में, पादप के किसी भाग का विकास बिना बीज के होता है, जो नवजात पौधे के रूप में उत्पन्न होता है। इस प्रकार के जनन को “विविपरीत जनन” भी कहा जाता है।

असंगजनन का महत्व विभिन्न कारणों से है:

  1. जीवन की अनुकूलता: असंगजनन प्रक्रिया वनस्पतियों को उनके पर्यावरण में अधिक संपत्तिशील बनाती है। यह उन्हें प्राकृतिक परिस्थितियों के साथ संगत बनाता है और अधिक विकासशीलता को संभावित बनाता है।
  2. वनस्पतिक समृद्धि: असंगजनन प्रक्रिया वनस्पतियों के लिए संगठित वनस्पतिक समृद्धि की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह उन्हें ज्यादा प्रजनन क्षमता प्रदान करता है और अधिक विकसित वनस्पतियों के रूप में परिणाम होता है।
  3. प्रकृति का संतुलन: असंगजनन वनस्पतियों के प्राकृतिक संबंधों में संतुलन लाता है, जिससे वार्षिक प्रजनन दर संतुलित रहती है और प्राकृतिक संरक्षण को साधना मिलती है।
  4. विविधता का संरक्षण: असंगजनन प्रक्रिया विविधता का संरक्षण करती है और वनस्पतियों को अलग-अलग प्रकार के पर्यावरणों में अनुकूल बनाती है। इससे वनस्पतियों की संरक्षित क्षमताएँ बढ़ जाती हैं और वे विविधता को बढ़ावा देते हैं।

इस प्रकार, असंगजनन वनस्पतियों के लिए विविध महत्व है, जो उन्हें प्राकृतिक परिस्थितियों में अधिक संपत्तिशील बनाता है और उनकी संरक्षणीय क्षमताओं को बढ़ावा देता है।

Leave a Comment